
Kanch Ki Chudiyan (Hindi Novel)
'हां प्यार... जिसने मुझे प्यार करना सिखा दिया। मेरा प्यार तो पानी का एक बुलबुला था...एक रंगीन सपना था... जो यूं ही कांच की चूड़ियों में तुम्हें दिया था... मेरा प्यार तो उन्हीं चूड़ियों के समान निर्बल निकला...बस एक ही ठेस से फूट गया। गंगा! मुझे अब वह प्यार चाहिए जो तुम्हारी धमनियों में है, जो तुम्हारे हृदय की धडकनों में बसा है, तुम्हारी गर्म सांसों में है... वह प्यार, जो तुम्हारे नयनों की ज्योति से मेरे अंधकारमय हृदय को प्रकाशमान कर दे... गंगा! मुझे वही प्यार चाहिए.. वही प्यार...''
Auteur | | Gulshan Nanda |
Taal | | Hindi |
Type | | E-book |
Categorie | | Taal |